सम्पूर्ण विश्व में देवभूमि के नाम से विख्यात उत्तराखण्ड का सम्बन्ध देववाणी संस्कृत से प्राचीन काल से ही रहा है। वेद, उपनिषद, रामायण, महाभारत, पुराण, धर्मस्मृतियां आदि हमारे सभी धार्मिक ग्रन्थ संस्कृत भाषा में लिखे हुए हैं। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार 18 पुराणों की रचना महर्षि वेदव्यास ने उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध बदरीनाथ धाम के समीप माणागाँव में की थी। वहाँ पर कविकुलगुरु महाकवि कालिदास का प्रारम्भिक जीवन उत्तराखण्ड की पहाडि़यों (कविल्ठा ग्राम रुद्रप्रयाग) पर बीता है इस विषय में सभी संस्कृत विद्वान् एकमत हो रहे हैं। देवतात्मा हिमालय का सौन्दर्य एवं सुषमा उनके काव्यों एवं नाटकों में स्पष्ट परिलक्षित होता है। उत्तराखण्ड में बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री एवं यमुनोत्री पवित्र चार धामों सहित अनेक मठ एवं मन्दिरों में नित्य पूजा, पाठ, भजन, कीर्तन एवं प्रवचनादि संस्कृत भाषा में ही सम्पादित होते हैं। उत्तराखण्ड में 90 संस्कृत विद्यालय एवं महाविद्यालय है जहाँ अध्ययन एवं अध्यापन का कार्य संस्कृतभाषा में ही सम्पन्न होता है। कहने का तात्पर्य यह है कि देवभूमि उत्तराखण्ड से ही संस्कृत ज्ञानगंगा धारा भारत भूमि को पवित्र करती हुई सम्पूर्ण विश्व में प्रवाहित हुई थी।
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